Monday 1 April 2013

आप भी बन सकते हैं अगले टॉपर




आठ अप्रैल को हुई इस परीक्षा में देश भर के लाखों परीक्षार्थियों ने भाग्य आजमाया था। शुक्रवार को परिणाम घोषित किया गया। पिछले वर्ष की तुलना में स्टूडेंट्स को अंक देने का पैटर्न और पूछे जानेवाले सवालों का ट्रेंड कुछ बदला हुआ दिखा। इसका असर ओवरऑल मेरिट पर भी पडा। इस वर्ष आइआइटी-जेईई 2012 में 4,79,651 छात्र-छात्राओं ने परीक्षा में हिस्सा लिया। देश भर के17आइआइटी संस्थान छात्र-छात्राओं को काउंसिलिंग के लिए आमंत्रित करेंगे। यह संख्या पिछले वर्ष की तुलना में चार हजार अधिक है। इस बार परीक्षा की खासियत यह रही कि समाज के हर वर्ग के मेधावियों ने मेरिट में जगह बनाई। पहली बार बेहद गरीब वर्ग के बच्चों के सफल होने का ग्राफ हर बार की अपेक्षा इस बार ऊंचा रहा। इनमें किसी के पिता ईट-गारा उठाकर परिवार चलाते हैं, तो किसी के पिता घरों की रंगाई-पुताई करके जीवन यापन कर रहे हैं। इस परीक्षा में जो भी चुना गया, उसकी अपनी प्रेरक दास्तां है। आइआइटी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा 2012 में फरीदाबाद के अर्पित अग्रवाल ने देश में प्रथम स्थान हासिल किया है। दूसरे स्थान पर आइआइटी रुडकी जोन के बीजॉय सिंह कोचर तथा तीसरे स्थान पर आइआइटी खडगपुर जोन के निशांत एन कौशिक रहे। वहीं आइआइटी मद्रास जोन की इनाला जीवन प्रिया ने लडकियों के वर्ग में प्रथम स्थान हासिल किया है।
जहां खाने को तरसते थे, वहां के लाल ने किया कमाल
इस बार के रिजल्ट परिणामों से यह देखने को मिला कि मेधा और प्रतिभा सभी में होती है, बशर्ते अनगढ पत्थर को सलीके से तराशा जाए। सफल स्टूडेंट्स को देखकर कहा जा सकता है कि कैसी भी परिस्थिति हों, अगर प्रतिभा है, तो आइआइटी जैसी कठिन परीक्षा में भी सफलता मिल सकती है। 245 वीं रैंक सिद्धार्थ के पिता मंशा राम ने घरों में पुताई कर अपने बेटे को पढाया, तो वहीं लाचार पिता और भाई का सहारा बनी इंदू ने प्राइवेट स्कूल में पढाकर अपने भाई हिमांशू को आइआइटियन बनाकर दम लिया। अंकुर की कहानी भी इसी तरह की है। अंकुर के पिता के देहांत के बाद लग रहा था जैसे बच्चों की पढाई बंद करनी पडेगी। लेकिन मां ने आशा नहीं छोडी, फिर हिम्मत संजोई और बेटे का हौसला बढाया। परिणाम सबके सामने है कि आज अंकुर आइआइटी-जेईई की मेरिट में है। इसी तरह 839 रैंक लानेवाले राहुल गौतम के पिता भी एक छोटे से मकान में रहते हैं,मजदूरी करके किसी तरह अपना पेट पालते हैं। लेकिन दाद दीजिए उनके अरमानों की जो अपने बेटे को आइआइटी में जगह दिलाकर ही माने। कहने का आशय यह है कि यदि आपमें प्रतिभा है तो यहां सफलता आपमें और उसमें फर्क नहीं करेगी। यह उसी को मिलेगी, जो बेहतर होगा।
रेगुलर पढाई है मंत्र
अपनी सफलता का सारा श्रेय परिवार को देने के बाद अर्पित कहता है कि सफलता के लिए नियमबद्ध होकर पढना बहुत जरूरी है। कोचिंग छात्रों का मार्गदर्शन करती है, लेकिन सफलता मेहनत और लगन से मिलती है।
सफलता के लिए हर विषय की कमजोर कडी को दूर करने और हर विषय पर नियंत्रण के लिए पढाई के समय को ऐसे बांटे कि सभी विषयों को पढने का बराबर समय मिले। अपना अनुभव बताते हुए अर्पित कहते हैं कि उसने लगातार चार घंटे तक कभी पढाई नहीं की। वह रिलैक्स होकर पढता था। देशभर में सातवां स्थान हासिल करने वाले अनंत गुप्ता ने कहा मैं माता पिता व टीचर को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिनके मार्गदर्शन और प्रोत्साहन ने मुझे आगे बढाया है।
अनंत ने कहा मैं रोजाना 4 से 5 घंटे अध्ययन करता था। मेरा मानना है कि स्टडी तो जरूरी है,लेकिन उसके साथ क्वालिटी स्टडी और भी जरूरी है। भले ही आप 3-4 घंटे पढें, लेकिल फुल कंसंट्रेशन जरूरी है।
बढाएं प्रॉब्लम सॉल्विंग कैपिसिटी
अभी अर्पित को बारहवीं के रिजल्ट का इंतजार है, लेकिन वह आइआइटी टॉपर बन चुका है। खुशी उसके चेहरे से साफ झलक रही है। कईसंस्थानइसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल टैलेंट सर्च एग्जामिनेशन जैसी परीक्षा की प्रिपरेशन कराते हैं। इस परीक्षा के माध्यम से स्टूडेंट्स की तैयारी और समझ काफी विकसित हो जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, वैसे तो स्टूडेंट्स को छठी क्लास से ही तैयारी शुरू कर देनी चाहिए, लेकिन इस समय स्टूडेंट्स की अपेक्षा गार्जियन और टीचर को अधिक मेहनत की जरूरत होती है। इस समय स्टूडेंट्स की पढाई इस तरह की होनी चाहिए, जिससे वह किसी भी चीज को अलग तरीके से सोच सके। उदाहरण के लिए यदि मैथ्स का प्रश्न है, तो उसे सॉल्व करने के लिए फार्मूले खोजने चाहिए। इस वर्ग केस्टूडेंट्स की तैयारी का मुख्य मकसद आइआइटी-जेइइ के मार्फत एनटीएसई की तैयारी पर फोकस होता है।
किसी भी प्रॉब्लम को एनालिटिकल तरीके से सोचने और प्रॉब्लम सॉल्विंग कैपिसिटी का रुझान इस समय काफी महत्वपूर्ण होता है। इस परीक्षा में सफल हुए स्टूडेंट्स भी मानते हैं कि भले ही आइआइटी-जेईई की गंभीर तैयारी ग्यारहवीं के बाद होती है, लेकिन ओलंपियाड, एनटीएसई इस परीक्षा की तैयारी में अपको काफी मदद देते हैं। वहीं नवीं, दसवीं की एनसीईआरटी पुस्तकों से पीसीएम से संबंधित सवाल हल करना भी इस दौरान उतना ही फायदेमंद है। इन सब चीजों से स्टूडेंट्स में वे गुण विकसित हो जाते हैं, जो परीक्षा की बाधादौड में अतिरिक्त गति देते हैं।
एक साथ करें बोर्ड और जेईई की तैयारी
यह समय परीक्षार्थी के लिए सबसे क्रूशियल होता है, क्योंकि स्टूडेंट्स को एक साथ दो तरह की परीक्षा देनी पडती हैं। पहली और सबसे अहम परीक्षा बारहवीं बोर्ड की होती है, जिसमें कम से कम प्रथम श्रेणी से पास करना ही होता है। वहीं उन्हें आइआइटी की परीक्षा भी देनी पडती है। दोनों परीक्षाओं की अलग तैयारी संभव नहीं है।
विशेषज्ञों के अनुसार, आइआइटी-जेईई सिलेबस बोर्ड और कम्पीटिशन के सिलेबस को मर्ज करके तैयार किया गया हैलिहाजा इसमें दोनों ही फ्रंट्स पर एक साथ संघर्ष करना होगा।
टॉपर्स टॉक
मार्गदर्शन और सही स्ट्रेटेजी से मिली सफलता
पहले ही अटैम्प्ट में आइआइटी-जेईई परीक्षा में फ‌र्स्ट रैंक पाने वाले अर्पित का कहना है कि यदि चार से पांच घंटे प्रतिदिन पढाई कर ली जाए, तो कामयाबी सहज हो सकती है। खुद उन्होंने ग्यारहवीं में पहुंचते ही आइआइटी-जेईई के लिए स्ट्रेटेजी बना ली थी। उसी के अनुरूप मात्र 4 से 5 घंटे की प्रतिदिन पढाई ने यह सम्मान दिलाया है। अर्पित कहते हैं कि आइआइटी उनका बचपन का सपना था। पापा ने हौंसला बढाया, मम्मी से आशीर्वाद मिला और बहन के सहयोग से मैंने आज इसे प्राप्त कर ही लिया। अब आगे मैं कंप्यूटर इंजीनियर बनने की तमन्ना को पूरा करना चाहता हूं। परीक्षा मे ंपेश आई मुश्किलों के बारे में अर्पित का कहना है कि मैंने फीजिक्स पेपर के दो सवाल गलत मार्क कर दिए थे। उसे ठीक भी नहीं कर सकता था, क्योंकि इस वर्ष पहली बार उत्तर पुस्तिका पर मार्किंग बॉल पेन से की जा रही थी। उसके बाद लग रहा था कि टॉपर बनने का चांस बहुत कम है। लेकिन किस्मत मेरे साथ थी और मैं टॉप कर गया। गाइडेंस के बारे में वह सुझाव देते हैं कि मार्गदर्शन बहुत जरूरी है। वह चाहें घर में बडे भाई के रूप में हो या फिर सीनियर्स या किसी कोचिंग संस्थान के रूप में। लिहाजा आवश्यक हैकि किसी भी स्तर पर मिल रहे सुझावों को नजरंदाज न किया जाए ।
अर्पित अग्रवाल, आइआइटी-जेईई, 1 रैंक
कामयाबी शार्टकट से नहीं मिलती
देशभर में दूसरा स्थान हासिल करने वाले बिजॉय सिंह कोचड के पिता डॉ. एपी सिंह पेशे से मनोचिकित्सक हैं। बेटे की कामयाबी पर उनका कहना है कि मैंने बिजॉय की सफलता की आस तो जरुर लगाई थी, इतनी बडी कामयाबी मिलेगी, इसका अंदाजा नहीं था। सभी माता-पिता चाहते हैं उनके लाडले कामयाबी की मंजिले तय करें मगर यह उन की मेहनत और लगन पर निर्भर करता है कि बच्चा किन ऊचांइयों को छुएगा। मैंने बिजॉय को हार में भी कभी टूटने नहीं दिया। बिजॉय के टीचर्स ने भी उसे सही दिशा की ओर मोडा। इन्हीं सब चीजों का नतीजा इस अद्भूत सफलता के रूप में मिला है। फोन पर हुई बातचीत में बिजॉय का कहना था कि मैं अपनी कामयाबी के लिए पेरेंट्स, टीचर और ईश्वर का धन्यवाद देना चाहता हूं। साथ ही इस आगामी आइआइटी-जेईई की तैयारी मे लगे स्टूडेंट्स को संदेश देते हुए कहते हैं कि मेहनत तो सभी करते हैं, लेकिन अंत तक जूझने, लडने की क्षमता रखने वालों को ही जीत नसीब होती है। इसलिए कठिन परिश्रम से न घबराएं, विजेता कभी शॉर्टकट के मोहताज नहीं होते। बिजॉय सिंह कोचर (2 रैंक )
नियमित पढाई ने दिलाई सफलता
अंनंत मानते हैं कि अगर मन लगाकर नियमित पढाई की जाए, तो आइआइटी जेईई में सफलता हासिल की जा सकती है। इसमें सफल होने के लिए किताबी कीडा बनने की जरूरत नहीं है। जरूरत है, तो सिर्फ टू दी प्वाइंट पढाई की। ज्यादा कठिन परिश्रम काम आता है। लिहाजा तैयारी में स्टडी के साथ स्मार्ट स्टडी को भी अप्लाई करें। अनंत के पिता राजपुरा में एमबीबीएस राजीव गुप्ता व माता एमबीबीएस सीमा गुप्ता ने बेटे की कामयाबी के लिए उसकी मेहनत, ईश्वर और टीचर को श्रेय दिया। अनंत ने कहा कि मेरा कंप्यूटर के क्षेत्र में आगे बढने का लक्ष्य है।
अनंत गुप्ता (7 रैंक )
भरोसा ऑथेंटिक बुक्स पर
जेईई पेपर के सवालों की एनालिसिस और घोषित परिणाम की समीक्षा करने पर ऐसा लगता है कि जिन छात्रों ने सब्जेक्ट्स के अच्छे लेखकों की किताबों से पूरे ईमानदारी से पढाई की है, उनका रिजल्ट बेहतर आया है। आइआइटी की प्रवेश परीक्षा मेंसफलता पाने वाले बिजॉय सिंह कोचड व अनंत गुप्ता का मानना है कि सही मार्गदर्शन के साथ अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करने से लाभ मिलता है। लगभग दोनों विद्यार्थियों ने एक ही बात कही कि एनसीईआरटी की पुस्तकों के अलावा हर विषय की एक प्रामाणिक पुस्तक का बार-बार अध्ययन करना आइआइटी जैसी परीक्षा के लिए लाभप्रद है।
आखिर क्यों है क्रेज
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के बढते क्रेज का प्रमुख कारण है आइआइटियन का सुपर ब्रेन। यहां से पास आउट प्रतिभाएं सुपर ब्रेन की श्रेणी में आती हैं। कई आइआइटी संस्थान विदेशों के प्रमुख विश्वविद्यालयों से जुडे होते हैं। इसी कारण आइआइटी-जेईई एग्जाम में वही सफल होता है, जो वाकई एक्स्ट्राओर्डिनरी होता है। यहां से निकलने वाले स्टूडेंट्स आइआइएम और आईएएस की परीक्षा में काफी संख्या में सफल होते हैं। आइआइटी में रुझान का पता सातवीं क्लास से लगाया जा सकता है।
(जेआरसी टीम के साथ ओजस्कर पांडेय)
>जेआरसी टीम

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