Monday 1 April 2013

तबादलों का ताजा दौर


उत्तर प्रदेश में आइएएस, आइपीएस, पीसीएस और पीपीएस अधिकारियों के बड़े पैमाने पर तबादलों से कई सवाल खड़े होते हैं। आश्चर्यजनक है कि बड़ी संख्या में आइएएस, आइपीएस, पीसीएस और पीपीएस अधिकारियों का तबादला तो कर दिया गया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि दर्जनों अधिकारियों को इधर से उधर कर देने का निर्णय किन कारणों से लिया गया? हो सकता है कि अधिकारियों के तबादलों के संदर्भ में राज्य सरकार की ओर से यह कहा जाए कि ऐसा शासन की जरूरत के तहत किया गया है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि एक वर्ष के अंदर ही दूसरी या तीसरी बार इतने बड़े पैमाने पर तबादले कर दिए गए। इसके पहले राज्य में सपा की सरकार बनते ही करीब-करीब प्रत्येक अधिकारी को ताश के पत्तों की तरह इधर से उधर कर दिया गया था। चूंकि उत्तर प्रदेश में शासन में परिवर्तन होते ही अधिकारियों के तबादलों का एक रिवाज सा बन गया है इसलिए अधिकारियों का स्थानांतरण अपेक्षित भी था, लेकिन तबादलों के ताजे दौर का औचित्य समझना कठिन है। यदि इतने बड़े पैमाने पर अधिकारियों के तबादले उन शिकायतों के चलते किए गए जिनके तहत यह कहा जा रहा था कि नौकरशाही सही ढंग से कार्य नहीं कर रही है और उसके खिलाफ सख्ती का परिचय देने की आवश्यकता है तो भी यह कहना कठिन है कि इन तबादलों से कुछ विशेष हासिल हो सकेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि उत्तर प्रदेश में अब ऐसी स्थिति बन गई है कि तबादलों को किसी दंड की संज्ञा नहीं दी जा सकती। यदि यह सोचा जा रहा है कि रह-रहकर किए जाने वाले तबादलों से नौकरशाही पर सही तरह काम करने के लिए दबाव बनाया जा सकता है तो ऐसा कुछ होने के आसार न के बराबर ही हैं। बेहतर हो कि राज्य सरकार उन तौर-तरीकों की खोज करे जिनकी मदद से प्रशासनिक तंत्र को पटरी पर लाया जा सकता है। जब तक ऐसा नहीं किया जाता तब तक न तो नौकरशाही के कामकाज की खामियां दूर होने वाली हैं और न ही प्रशासनिक तंत्र से आम जनता और शासन की अपेक्षाएं पूरी होने वाली हैं।
[स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]

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