Thursday 29 November 2012

पीएम के हस्तक्षेप से नेत्रहीन बना आईएएस


Blind candidate now IAS officer
नारनौल [देवेंद्र यादव]। 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो'- शायर दुष्यंत की इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के खेड़ी गांव निवासी नेत्रहीन अजीत कुमार ने। उन्होंने चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आईएएस अफसर के पद पर चयनित होकर मुकाम हासिल कर लिया है।
उन्हें यह उपलब्धि प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप पर मिली है। अब अजीत देश के दूसरे नेत्रहीन आईएएस बन गए हैं। इससे पहले पंचकूला निवासी सुखसोहित सिंह ने नेत्रहीन आईएएस बनने का गौरव हासिल किया था।
अपने कठिन समय को जागरण के साथ साझा करते हुए अजीत ने बताया कि वर्ष 2008 में उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। 791 सफल परीक्षार्थियों में उनका 208वां रैंक था। इतनी अच्छा रैंक आने के बाद भी उन्हें आइएएस के बजाय आइआरपीएस [भारतीय रेलवे सेवा] दिया गया था। इसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया। यह सब उनके नेत्रहीन होने के कारण किया गया। अजीत ने बताया कि अपने हक को पाने के लिए उन्हाेंने कैट [सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल] की शरण ली। कैट ने 8 अक्टूबर, 2010 को उनके हक में फैसला सुनाया। कैट ने निर्देश दिया कि उन्हें आठ सप्ताह में आइएएस का रैंक दिया जाए। फिर भी उन्हें आईएएस के पद के लिए नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया।
उन्हाेंने हार नहीं मानी और सांसद वृंदा करात के सहयोग से 29 नवंबर, 2011 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से उन्हें 16 जनवरी, 2012 को आईएएस अफसर के रूप में नियुक्ति मिली है। 14 फरवरी को नियुक्ति पत्र देकर 20 फरवरी तक मंसूरी में हाजिर होने की सूचना दी गई है। उन्होंने फोन पर बताया कि वह मंसूरी पहुंच गए हैं और 19 फरवरी को हाजिर होकर प्रशिक्षण शुरू कर देंगे।

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